वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
—————————————————————
मुक्तक
1-
मधुप जब पास आए तो कुसुम बोले शरारत है
नहीं वो जान पाएं ये जवां दिल की इबादत है
हमारी चाहतों को तुम न देना नाम कोई भी
तुम्हें मालूम तो होगा हमें तुमसे मुहब्बत है।।
2-
दिखेंगी झील सी आंखें यकीं फरमान होंगे ही
तुम्हारा साथ होगा जब जवां अरमान होंगे ही
मधुप कब तक सहेजेगा कि अरमानों कि डोली को
कुसुम बिखरा दिये मकरंद तो रसपान होंगे ही।।
3-
कहूं मन की कहानी या कि मैं चुपचाप हो जाऊं
नमी बन के रहूं तुझमें कि यारा भाप हो जाऊं
नहीं जीना तुम्हारे बिन मुझे चंदा कि इकपल भी
बनूं चंदन कि माथे का कि मैं अभिशाप हो जाऊं।।
More Stories
अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे ने सीएम धामी से की मुलाकात
मुख्यमंत्री धामी ने 188.07 करोड़ की 74 योजनाओं का किया लोकर्पण और शिलान्यास
निकाय चुनाव- पर्यवेक्षकों की टीम आज पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे नामों के पैनल