संसद की सुरक्षा चूक के मामले में बहस का दायरा बढ़ गया है। कानून तोडऩे वालों को अपने किए की सजा मिलनी चाहिए, लेकिन साथ ही उस मसले का हल भी जरूर ढूंढा जाना चाहिए, जो आगे चल कर देश में सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकती है। यह निर्विवाद है कि संसद की सुरक्षा को भंग करने वाले नौजवानों ने गैर-कानूनी रास्ता चुना। इसके लिए उनके खिलाफ कानून की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस बीच बेशक इस मामले में ऐसा कुछ नहीं कहा जाना चाहिए, जिससे समाज ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा मिले। लेकिन हकीकत यह है कि इस घटना से भारत में रोजगार के सवाल पर बहस खड़ी होती नजर आ रही है। इसकी वजह इन नौजवानों की पृष्ठभूमि है। ये सभी पढ़े-लिखे, लेकिन अपनी योग्यता के अनुरूप रोजगार ढूंढ पाने में नाकाम नौजवान हैं। उनमें से कम-से-कम तीन के माता-पिता और अन्य परिजनों ने सार्वजनिक बयान दिया है कि बेरोजगारी का मुद्दा उठाना गलत नहीं है।
इस बात ने ध्यान खींचा है कि इन नौजवानों के परिजन पूरी मजबूती से अपनी ‘बेटी/बेटों’ के साथ खड़े हैं। इसीलिए पहले सोशल मीडिया पर ये चर्चा छिड़ी। फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि संसद की सुरक्षा भंग होने के पीछे मुख्य कारण देश में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई की समस्याएं हैँ। उधर मेनस्ट्रीम मीडिया के एक हिस्से में इस प्रकरण में इस पहलू की चर्चा शुरू हुई है। इनमें ध्यान दिलाया गया है कि देश में ऊंची आर्थिक विकास दर के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती चली गई है।
यह आज के भारत की हकीकत है। जिस देश में श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 40 प्रतिशत से नीचे बनी हुई हो और उसके बावजूद बेरोजगारी दर भी साढ़े प्रतिशत से ऊपर हो, वहां आबादी के एक बड़े हिस्से में पैदा गहराने होने वाली मायूसी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस पर ध्यान देने के बजाय वर्तमान सरकार का नजरिया रोजगार की परिभाषा बदल कर समस्या की गंभीरता को घटाकर बताने का रहा है। यह एक तरह से परेशान नौजवानों के जले पर नमक छिडक़ने जैसा है। अब बेहतर होगा कि सरकार अपना ये नजरिया बदले। बेशक, कानून तोडऩे वालों को अपने किए की सजा मिलनी चाहिए, लेकिन साथ ही उस मसले का हल भी जरूर ढूंढा जाना चाहिए, जो आगे चल कर देश में सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकती है।
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