मोदी-शाह की जोड़ी बाहरी नेताओं से भाजपा को भरती चली गई है। इसको लेकर पहले भी भाजपा के अंदर असंतोष उबलता होगा। मगर मोदी-शाह को किसी ने कदम वापस पर लेने पर मजबूर किया हो, इसकी मिसाल कम ही होगी।
नरेंद्र मोदी- अमित शाह के दौर में यह भारतीय जनता पार्टी के लिए नया अनुभव है। पहले कई नीतिगत मामलों में केंद्र को अपने निर्णय एवं इरादे से पीछे हटना पड़ा और अब ऐसा पार्टी के अंदर होना शुरू हो गया है। इस पूरे संदर्भ को ध्यान में रखें, तो जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों की जारी पहली लिस्ट का वापस लिया जाना महत्त्वपूर्ण घटना बन जाता है। यहां प्रत्याशी सूची में कोई इक्का-दुक्का परिवर्तन नहीं हुआ। ना ही ऐसा नेतृत्व ने अपने आकलन के आधार पर ये कदम उठाया। 44 सदस्यों की जारी लिस्ट को कुछ देर में ही इसलिए वापस लेना पड़ा, क्योंकि जम्मू इलाके के भाजपा नेताओं/ कार्यकर्ताओं में उसको लेकर गुस्सा फूट पड़ा। प्रमुख शिकायत यह थी कि पार्टी में जीवन खपा देने वाले नेताओं की उपेक्षा करते हुए कुछ समय पहले ही दूसरे दलों से आए नेताओं को प्रत्याशी बनाया गया है। लेकिन मोदी-शाह के युग में इस तरह टिकट देना कोई नई बात नहीं है।
चुनाव जीतने की क्षमता को प्रमुख प्राथमिकता बना कर यह जोड़ी विभिन्न राज्यों में बाहरी नेताओं से भाजपा को भरती चली गई है। स्पष्टत: इसको लेकर भाजपा के अंदर असंतोष उबाल लेता होगा। मगर मोदी-शाह को पार्टी के किसी खेमे ने कदम वापस पर लेने पर मजबूर किया हो, इसकी मिसाल कम ही होगी। इस दौर की आम समझ यह रही है कि गुजरात से उभरते हुए इन दोनों नेताओं ने पहले भाजपा, और फिर देश की राज्य-व्यवस्था पर अपना वर्चस्व बना लिया। संभवत: इसमें वे इसलिए कामयाब रहे, क्योंकि उनकी पीठ पर अति प्रभावशाली हितों ने दांव लगा रखा है। लेकिन 2024 के आम चुनाव में लगे झटकों के बाद समीकरण बदलने के संकेत हैं। जिस तरह पार्टी ने सांसद कंगना राणावत के किसान विरोधी बयानों से किनारा किया है, वह भी एक नई प्रवृत्ति का संकेत है। यह सारा घटनाक्रम भारत के राजनीतिक परिदृश्य में युग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू होने का संकेत देता है। इससे फिर पुष्टि हो रही है कि लोकतंत्र में जो वोट खींचने में जितना सक्षम हो, उसी अनुपात में उसका सिक्का चलता है।
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