December 23, 2024

हिम सन्देश

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‘विचार एक नई सोच’ की सराहनीय पहल : पेरिफेरल वास्कुलर जैसी बीमारी को लेकर चलाया एक दिवसीय जागरूकता अभियान

‘विचार एक नई सोच’ की सराहनीय पहल : पेरिफेरल वास्कुलर जैसी बीमारी को लेकर चलाया एक दिवसीय जागरूकता अभियान

उत्तराखंड के पहले वरिष्ठ संवहनी सर्जन/विशेषज्ञ डॉ० प्रवीण जिन्दल बने अभियान का हिस्सा

क्या आपके पैरों पर भी दिखती हैं नीली-बैंगनी नसें, जानिए कौन सी बीमारी है और क्या है वजह ?

क्या गर्मियों में पैर की नसें नीली और मोटी दिख रही हैं ? यह गंभीर बीमारी हो सकती है वजह

नसों से जुड़ी गंभीर बीमारी है वैरिकोज वेन्स, हो सकती है मौत, जानिए लक्षण, कारण और बचाव

बैठने ही नहीं देर तक खड़े रहने के भी गंभीर परिणाम, हो सकती है मौत

'Vichar Ek Nai Soch' organization is a commendable initiative: one day awareness campaign on peripheral vascular diseases

हिम सन्देश, शनिवार, 10 जून 2023, देहरादून। आजकल की भागती दौड़ भाग की जिन्दगी को लेकर ‘विचार एक नई सोच’ संगठन ने पेरिफेरल वास्कुलर जैसी बीमारी को लेकर एक दिवसीय जागरूकता अभियान चलाया गया है। विचार एक नई सोच के सचिव राकेश बिजलवाण का मानना है कि आज के दौर में इस बीमारी के चपेट में महिलायें व पत्रकार सर्वाधिक आ रहे है। इसलिए ऐसी घातक बीमारी से कैसे बचाव किया जाये, इस हेतु वरिष्ठ संवहनी सर्जन/विशेषज्ञ डॉ० प्रवीण जिन्दल को इस अभियान का हिस्सा बनाया गया है। देहरादून से शुरू हुआ यह अभियान पूरे राज्य में चलाया जायेगा। इस बीमारी के प्रति लोगों की जागरूकता के लिए उत्तराखंड के सीमांत इलाकों व दुर्गम क्षेत्रों में नि:शुल्क हैल्थ कैंप भी लगाये जायेंगे।

‘विचार एक नई सोच’ अभियान के हिस्सा बने डॉ० प्रवीण जिन्दल ने पत्रकारों को बताया कि यह बीमारी मौजूदा कार्य की संस्कृति में हुए बदलाव के कारण बढ़ रही है। अधिक समय तक एक स्थान पर बैठने से ही नहीं बल्कि देर तक खड़े रहने से भी नसों से संबंधित बीमारी हो सकती है। स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक भी अक्सर नसों से संबंधित इस तरह की बीमारी यानी वैरिकोज की समस्या से ग्रसित हो रहे हैं, क्योंकि अधिकांश स्कूलों में शिक्षक खड़े होकर ही बच्चों को पढ़ाते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया यह बीमारी महिलाओं, पत्रकारों, शिक्षकों और सैनिकों में सबसे ज्यादा हो रही है, इसीलिए कि वे दिनभर में अधिकांश समय खड़े ही रहते हैं। अधिक समय खड़े रहने से ही यह बीमारी बढ़ जाती है। इसके अलावा खान पान और शाररिक व्यायाम के आभाव में भी नसों से संबधित बीमारियाँ फैलती है। डॉ० जिदंल ने कहा कि इसका संबध खून से होता है और बाद में यह वास्कुलर, वेरीकोस वेंस, हाथ पैरो के जोड़ों में दर्द, पैरो में सूजन और डीप वेन थ्रोम्बोसिस जैसी घातक बीमारी का रूप ले लेती है।

अनियमित जीवन-शैली नसों से जुड़ी बीमारियों का प्रमुख कारण

उत्तराखंड के एकमात्र वैस्कुलर सर्जन डॉ० प्रवीण जिंदल ने देहरादून व आसपास के स्कूलों में अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। इसके अलावा उन्‍होंने मधुमेह, धूमपान व शराब का सेवन व अनियमित जीवनशैली भी नसों से जुड़ी बीमारियों को भी प्रमुख कारण बताया है।
डॉ० प्रवीण जिंदल का कहना है कि रक्त वाहिकायें शरीर के विभिन्नि अंगों में आक्सीजन युक्त रक्त ले जाने वाली धमनियाँ व डीऑक्सीजेनेटेड रक्त को हृदय में वापस ले जाने वाली नसें हैं। ऑक्सीजन के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता है। धमनियों व नसों के रोग ऐसी स्थितियों का कारण बन सकते हैं जो या तो रक्त की आपूर्ति को रोक या कम कर सकते हैं। इस प्रकार के रोग में रक्त के थक्के बनना या धमनियों का सख्त होने जैसे लक्षण दिख सकते हैं। इसके अलावा चलने-फिरने पर पैर या टांगों में दर्द अथवा थकावट महसूस होना, स्ट्रोक, पेट दर्द व गैंग्रीन जैसी बीमारी भी नसों में खून की आपूर्ति बाधित होने से हो सकती है। डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी नसों में रक्त के थक्के जमने से व्यक्ति की मौत तक हो सकती है। वहीं क्रानिक शिरापरक रोग व वैरिकोज नसें भी व्यक्ति के लिए प्राणघातक साबित हो सकती है।

तम्बाकू और शराब के सेवन से बचें, शुगर व कोलेस्ट्राल पर करें नियंत्रण

वैस्कुलर सर्जन डॉ० प्रवीण जिंदल के अनुसार ऐसी घातक बीमारी से बचने के लिए आज कई प्रकार के उपचार उपलब्ध है। अच्छा हो कि बीमारी से पहले हमें सुरक्षा के बचाव खुद से करना चाहिए।
डॉ० प्रवीण जिंदल का कहना है कि स्वस्थ्य जीवनशैली, धूमपान व शराब का सेवन नहीं करना, संतुलित आहार, शुगर व कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण करने से भी नसों से संबंधित बीमारियों से बचा जा सकता है। खड़े रहने के कार्याें में तब्दीली करनी होगी साथ ही शाररिक व्यायात को महत्व देना होगा। दौड़भाग की जिन्दगी के साथ सबसे पहले खुद के स्वास्थ्य का ख्याल रखना आज की बहुत जरूरी आवश्श्यकता हो गई है।

वंशागत भी हो सकती है नसों से जुड़ी बीमारियाँ

विचार एक नई सोच के राष्ट्रीय संवाहनी जागरूकता कार्यक्रम के तहत डॉ० प्रवीण जिंदल ने बताया कि बाह्य धमनी रोग, शूगर, टाँगों में दर्द, वेरीकोस वेंस, डीप वेन थ्रोम्बोसिस जैसे अघात रोग सर्वाधिक बढ़ रहे हैं यह सभी रोग खून की परेशानियों से विभिन्न प्रकार की बीमारी के रूप में सामने आ रहे है और कई बार यह बीमारी वंशागत भी हो जाती है। इसके लक्षण कम ही पाये जाते हैं इसलिए जरूरी है कि शाररिक व्यायाम करना नियमित होना चाहिए, कार्य की संस्कृति में सबसे पहले स्वास्थ्य का ध्यान रखना अवश्य हो। इस दौरान पत्रकार वार्ता में ‘विचार एक नई सोच’ के सचिव राकेश बिजल्वाण, समाजसेवी मनोज इस्टवाल, प्रेम पंचोली सहित सैकड़ों लोग मैजूद थे।

'Vichar Ek Nai Soch' organization is a commendable initiative: one day awareness campaign on peripheral vascular diseases

 शरीर में ये लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें

डॉ० प्रवीण जिंदल का कहना है कि अन्य राज्यों की तुलना में नसों से संबंधित बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या उत्तराखंड में अधिक है। क्योंकि यहाँ पर लोग धूम्रपान व शराब का सेवन अधिक करते हैं। नसों से जुड़ी बीमारियों का समय पर इलाज नहीं कराने से व्यक्ति के शरीर को नुकसान पहुँच सकता है। निम्नलिखित लक्षण दिखने पर तुरंत वैस्कुलर चिकित्सक से सलाह लेकर इलाज करना चाहिए :
➤कम दूरी तय करने में ही थकावट महसूस होना,
➤पैरों व टांगों में सूजन,
➤ पैर के रंग का परिवर्तन होना,
➤सुन्नपन,
➤ पैर की उंगलियों का काला पड़ना,
➤ पेट में तेज दर्द होना,
➤लकवा

वेरिकोज वेन्स बीमारी होने के कुछ मुख्य कारण

ज़्यादा देर तक खड़े रहना : यदि आप ज़्यादा देर तक खड़े रहते है तो आपके पैरों में सूजन आने लगती है। ऐसे में आपको थोड़ी-थोड़ी देर में आराम करते रहना चाहिए, इससे पैरो में सूजन नहीं आएगी और नसों को आराम मिलेगा।

ज्यादा वजन के कारण : ज्यादा वजह होने के कारण आप जब भी खड़े रहते हैं, तब नसों पर दबाव पड़ता है, जिसके कारण ब्लड़ फ्लो धीमा हो जाता है, ऐसे में वजन ज़्यादा होने के कारण भी नसें सूज जाती हैं।

पैरो पर ज़्यादा जोर पड़ना : जब भी पैरों पर या शरीर के निचले हिस्से पर ज़्यादा जोर पड़ता हैं तो वहाँ खून जमने लगता है, जिसके कारण नसें सूज जाती हैं। यह समस्या ज्यादातर हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा या प्रेगनेंसी में होती है।

अनुवांशिक वजह से : कई बार लोगों को यह बीमारी अपने पूर्वजों के कारण भी होती हैं। यदि परिवार में किसी को वैरिकोज की समस्या है, तो ऐसा संभव है कि यह आपको भी हो सकती है।

वेरिकोज वेन्स के लक्षण

नसों में दर्द और सूजन होना : यह ज्यादातर काफी समय खड़े रहने या काफी समय तक चलने के कारण होती है।
पैरो में सूजन : जब ज्यादा वजन बढ़ता है तो इससे नसें दब जाती हैं, इससे धीरे-धीरे पैरों में सूजन आने लगती है।
सूखी त्वचा का होना : जब चेहरा सूखने लगता है तो ध्यान रखिये की आप डॉक्टर से सलाह लें।
रात में पैरो में दर्द होना : कई बार आपने महसूस किया होगा कि जब आप रात में सोने जाते हैं तो एकदम से पैरो में दर्द शरू हो जाता है। यह वेरिकोज वेन्स का ही एक लक्षण है।
नसों के आसपास त्वचा का रंग बदलना : कई बार आपने देखा होगा कि नसें नीली या बैंगनी सी होने लगती हैं। यह खून जाम होने की वजह से होता है, इससे वेरिकोज वेन्स की परेशानी हो सकती है।

वेरिकोज नसों से बचाव :

व्यायाम करें : व्यायाम करने से आपका वजन सही रहेगा, जिससे आपके पैरों पर दबाव नहीं पड़ेगा। पैरों पर दबाव न पड़ने से ब्लड़ फ्लो भी सही रहेगा और आपको किसी तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ेगा।

ज्याद देर तक खड़े न रहें : ज्यादा देर तक खड़े रहने से ब्लड़ फ्लो धीमा हो जाता है और धीरे धीरे पैरो में सूजन आने लगता है, इसलिए ज्यादा देर तक खड़े न रहें।

टाइट कपड़े न पहने : टाइट कपड़े पहनने से नसें दबने लगती हैं, फिर नसों में सूजन आ जाती है। इससे नसों का रंग बदलने लगता है। आप कोशिश करें कि ज्यादा टाइट कपड़े न पहनें।

ऊँची हील्स वाले फूटवेयर न पहने : आपने अक्सर यह महसूस किया होगा कि जब भी आप ऊँची हील्स वाले फूटवेयर पहनते हैं तो आपके पैरों में सूजन आ जाती है, इसलिए ऊँची हील्स वाले फूटवेयर न पहने ताकि आपके पैरों में सूजन न आये।

कम्प्रेशन मौजों का इस्तेमाल करें : कम्प्रेशन मौजे पहनने से ब्लड़ फ्लो सही रहता है, पैरो की सूजन कम हो जाती है और नसों से जुडी बीमारियों में सुधार आता है। कम्प्रेशन मौजों का इस्तेमाल करने से ब्लड क्लॉट से बचा जा सकता है। पैरों की परेशानी होने पर कम्प्रेशन मौजों का इस्तेमाल करें।