अजीत द्विवेदी
हम ऐसे समय में रह रहे हैं, जब सब कुछ राजनीति से, राजनीति के लिए और राजनीति द्वारा संचालित है। हर विचार, विमर्श और घटना के केंद्र में राजनीति है। धर्म और भगवान के नाम पर राजनीति है तो देश का नाम भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा है। तभी जब भारत और इंडिया के नाम की राजनीति शुरू हुई तो हैरानी नहीं हुई। इसकी शुरुआत विपक्षी पार्टियों ने की, जब उन्होंने अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखा। इससे पहले इंडिया, इंडियन, नेशनल आदि शब्द पार्टियों के नाम में होते थे लेकिन सीधे सीधे ‘इंडिया’ नाम रख लेना एक अलग स्तर की राजनीति की शुरुआत थी। भाजपा और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवाद की राजनीति की काट खोज रही विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्र का नाम ही अपना लिया। विपक्षी पार्टियों ने जब इस तरह की राजनीति शुरू की तो उसी समय उनको जवाबी हमले के लिए तैयार हो जाना चाहिए था। जवाबी हमले में भाजपा और उसकी केंद्र सरकार ने सिर्फ इतना किया है कि इंडिया की जगह भारत नाम का इस्तेमाल ज्यादा करना शुरू कर दिय है। संविधान के अनुच्छेद एक में साफ लिखा है- इंडिया जो कि भारत है। इसका मतलब है कि आप कहीं भी इन दोनों में से किसी नाम का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसलिए अगर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया या प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया की जगह प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत लिखा गया तो इसका यह मतलब नहीं है कि अब देश का नाम इंडिया नहीं रहा। देश का नाम इंडिया भी है और भारत भी है, जिसको जो अच्छा लगे वह उसका इस्तेमाल करे। चूंकि राष्ट्रीय स्वंयसेवक और भाजपा नेता पहले से कहते रहे हैं कि देश का नाम भारत ही होना चाहिए क्योंकि इंडिया विदेशियों का दिया नाम है, इसलिए सरकारी निमंत्रण में इंडिया की जगह भारत लिखे जाते ही सारी विपक्षी पार्टियां कूद कर इसके विरोध में उतर आईं। लेकिन असल में यह न तो संवैधानिक रूप से गलत है और न कानूनी रूप से। हां, यह जरूर है कि इससे राजनीति की गंध आ रही लेकिन वह तो विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखने से भी आ रही थी!
हिंदी और अंग्रेजी दोनों में इंडिया को भारत कहे और लिखे जाने का विरोध करने से पहले यह समझना जरूरी है कि ये दोनों नाम सदियों या सहस्राब्दियों से प्रचलित हैं। इनके अलावा दूसरे नाम भी प्रचलित हैं, जो संविधान में नहीं लिखे गए हैं और जिनका इस्तेमाल आम लोग अपनी सुविधा के हिसाब से करते हैं। ‘आर्यावर्त’ या ‘हिंदुस्तान’ नाम संविधान में नहीं हैं, फिर भी व्यापक रूप से इनका प्रचलन है। महान स्वतंत्रता सेनानियों चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन किया था और अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी लड़ाई लड़ी, जिसकी मिसाल नहीं है। ‘हिंदुस्तान’ नाम संविधान में नहीं स्वीकार किया गया। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह असंवैधानिक या गैरकानूनी हो गया। आज भी हर राष्ट्रीय त्योहार पर ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा’ बजाया जाता है। ऐसे ही ‘आर्यावर्त’ भी संविधान में नहीं है लेकिन भारत में लगभग हर हिंदू के घर में किसी भी पूजन के समय जो पहला संकल्प होता है वह ‘ज्द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बूदीपे भारतखंडे आर्यावर्ततेज्’ से ही शुरू होता है। बाद में इसमें नगर, स्थान, यजमान के नाम आदि जुड़ते हैं। इसलिए इंडिया को लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। अगर केंद्र सरकार कानून बना कर इंडिया को असंवैधानिक या गैरकानूनी न घोषित कर दे तो यह नाम भी प्रचलन में रहेगा, जैसा कि हिंदुस्तान और आर्यावर्त हैं।
भारत के जितने भी नाम प्रचलित हैं उन सबको लेकर कई कई तरह ही मिथक कथाएं भी प्रचलित हैं। जैसे एक कहानी के मुताबिक भारत नाम राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा। दूसरी कहानी के मुताबिक अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्रों में से एक भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। जैन कथा के मुताबिक देश का नाम पहले जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा, जो पहले चक्रवर्ती सम्राट थे। एक मिथक कथा यह भी है कि विदर्भ के राजा भोज की एक बहन थी इंदुमति, जिसने अयोध्या के राजा अज को अपना पति चुना था। उन्हीं राजा अज के बेटे दशरथ हुए। कहानी के मुताबिक इंदु या इंदुमति के नाम से ही कालांतर में इस देश का नाम इंडिया हुआ। सबसे लोकप्रिय धारणा के मुताबिक इंडस वैली यानी सिंधु घाटी सभ्यता की वजह से देश का नाम इंडिया हुआ और यहां रहने वालों को हिंदू कहा गया। यूनान के इतिहासकार मेगास्थनीज ने ईस्वी पूर्व तीन सौ साल पहले यानी अभी से कोई 23 सौ साल पहले इस देश के बारे में ‘इंडिका’ नाम से किताब लिखी थी। दुनिया भर के शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के काम पर इस किताब का असर दिखता है। इस किताब का नाम यह दिखाता है कि आज से 23 सौ साल पहले यानी प्राचीन भारत में इंडिया नाम प्रचलित था और इंडिया नाम प्रचलित होने के कोई दो सौ साल बाद पहली बार भारत नाम सुनाई देता है। सो, यह नहीं कह सकते कि अंग्रेजों ने इंडिया नाम दिया इसलिए यह गुलामी का प्रतीक है। हो सकता है कि यह राजा दशरथ की मां के नाम पर हो या इंडस वैली सभ्यता के नाम पर हो। ध्यान रहे कोलंबस इंडिया खोजने ही निकला था और अमेरिका का रास्ता खोज लिया था। उसको लगा कि उसने इंडिया खोज लिया, तभी वहां के मूल निवासी इंडियन या रेड इंडियन कहे जाते हैं। सोचें, दुनिया का सबसे विकसित मुल्क इंडिया की खोज का बाई प्रोडक्ट है!
बहरहाल, इंडिया कहिए या भारत एक हकीकत यह भी है कि दोनों की पारंपरिक परिभाषा में विंध्य पर्वत के उस पार का इलाका नहीं आता है। पारंपरिक रूप से इंडिया और भारत दोनों में दक्षिण भारत नहीं है। सिंधु नदी के किनारे बसे लोग इंडिया के लोग हैं और भारत की भौगोलिक सप्तसिंधु की है यानी सात नदियों का प्रदेश, जो स्पष्ट रूप से उत्तर भारत का क्षेत्र है। इसकी सीमा भी विंध्य के उत्तर में ही है। आर्यावर्त में तो खैर अनार्यों की कोई जगह ही नहीं है। सो, नाम के विवाद में पडऩे की जरूरत नहीं है। जो नाम संविधान में लिखा है वह भी सही है, जो नहीं लिखा है वह भी सही है। अगर विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम ‘इंडिया’ रखा है तो वह उस नाम से राजनीति करे और सरकार व भाजपा अगर देश को भारत के नाम से पुकारना चाहते हैं तो वह भी अच्छा है। दोनों नाम प्रचलित हैं और समान रूप से जनमानस में पैठे हुए हैं। पक्ष और विपक्ष अपनी अपनी राजनीति के लिए दोनों नामों का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन यह तय है कि नाम चाहे इंडिया हो या भारत या दोनों, आम लोगों के जीवन पर इससे रत्ती भर फर्क नहीं पडऩे वाला है। न इंडिया नाम की वजह से लोग गुलाम व गरीब हैं और न भारत नाम की वजह से आजाद व अमीर हो जाएंगे। उनकी जो नियति है वह है। वह नाम बदलने से नहीं बदलने वाली है।
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