अमित नैथानी मिट्ठू
ऋषिकेश, उत्तराखंड
—————————————————————–
उत्तराखण्ड में अपने रीति-रिवाजों का एक खास स्थान है। विशेषकर शादी/विवाह में कई अनूठी रस्में हैं। लोग शादी भले गाँव में न करते हों। लेकिन, रिवाज़ पूरे दिल से आज भी शहरों में निभाते है। शादी की एक ऐसी ही अनूठी रस्म है सतबत्ती (सात बाती) यानी शिलारोहण। इस रस्म में सिलवटे पर 7 बत्ती (बाती) जलाई जाती है। एक-एक करके 6 को बुझाया जाता है, आखिरी बत्ती को जलता हुआ छोड़ देते हैं।
फेरे लेते समय परिक्रमा पथ में उत्तर दिशा में रखे सिलबट्टे पर वधु बट्टे के ऊपर अपना दायाँ पैर रखती है और वर अपना बायाँ हाथ वधू के बाएँ कंधे पर रखते हुए अपने दायें हाथ से वधू के पैर को बट्टे सहित सिल पर आगे बढ़ाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि जीवन पथ में कितने भी कष्टों के पहाड़ क्यों न आ जाएँ हम मिल कर उन्हें पार करेंगे, हर कठिनाई में सुमेरु की तरह स्थिरमति से जीवन निर्वाह करेंगे।
छठे फेरे में सिलबट्टे पर दही, उरड़ व चावल के मिश्रण के ऊपर सरसों के तेल में भीगी रुई की सात बत्तियाँ जलाकर रखी जाती है। वर पूर्ववत वधू के कंधे पर बायाँ हाथ रख दायें हाथ से वधू के पैर को बट्टे पर रगड़ते हुए एक-एक कर छह बत्तियाँ बुझाता हुआ पंडित जी द्वारा मंत्रपाठ के अनुसार वधू से छः वचन कहता है।
हे वधू, ऐश्वर्य के लिए एकपदी हो, ऊर्ध्व के लिए द्विपदी हो, भूति के लिए त्रिपदी हो, समस्त सुखों के लिए चतुष्पदी हो, पशु सुख (दूग्ध, घृत, अन्न) के लिए पंचपदी हो, ऋतुओं के सुख (ऋतुएँ हमारे अनुकूल हों, सभी ऋतुएँ अपने समय में समस्त सुख प्रदान करें) के लिए षटपदी हो। अब पुरोहित जी सातवीं बत्ती वर-वधू के सिर के ऊपर घुमा कर वेदी में प्रज्वलित दीपक में रख देते हैं। यह वर-वधू के भावी जीवन में प्रकाश व चहुंमुखी उन्नति हेतु स्तवन की प्रतीक है। अब वर की ओर से सातवाँ वचन कहा जाता है, हे सखी मुझ से सखा भाव के लिए तुम सप्तपदी हो जाओ। हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है, जिसे आगे लेकर चलना और निभाना हमारा कर्तव्य भी है ।
More Stories
नगर निगम, पालिका व पंचायत के आरक्षण की फाइनल सूची जारी
कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने स्वामी विवेकानन्द पब्लिक स्कूल के 38वें वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में किया प्रतिभाग
चकराता में हुई सीजन की दूसरी बर्फबारी, पर्यटक स्थलों पर उमड़े लोग, व्यवसायियों के खिले चेहरे