पागल फकीरा
भावनगर, गुजरात
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ज़िन्दगी के हसीन लम्हे भी गुज़रे हुवे पल हैं,
दर्द को अल्फ़ाज़ों में पिरोकर लिखी ग़ज़ल है।
ज़िन्दगी हक़ीक़त कैसे बयां करूँ ज़माने से,
आज जी लो ज़िन्दगी शायद क़यामत कल है।
तेरे चेहरे की उदासी का मंज़र है मेरे सामने,
तेरी आँख के आँसू मेरी आँख में मुक़म्मल हैं।
ज़माने की मार पीट का तो कोई असर नहीं,
आशिक़ तो आँखों के काजल से घायल है।
दिल-ओ-दिमाग़ से तो है सही सलामत हम,
अब फ़क़ीरा पागल नहीं फ़िर भी पागल है।
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