पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगर जीत हासिल करने वाली पार्टियां मुफ्त बिजली को लेकर अपना चुनावी वादा पूरा करती हैं, तो इससे इन राज्यों के बिजली वितरण व्यवस्था में सुधार करने की कोशिश को झटका लग सकता है।
बिजली वितरण व्यवस्था में सुधार का काम पहले ही अटका हुआ
पहले से ही पंजाब व यूपी जैसे राज्यों में बिजली वितरण व्यवस्था में सुधार का काम अटका हुआ है।अगर यूपी की बात करें तो वहां कांग्रेस ने सभी बिजली ग्राहकों के बिल को आधा करने और सपा ने किसानों को मुफ्त बिजली के साथ हर सामान्य बिजली ग्राहकों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया था। दूसरी तरफ भाजपा ने सभी किसानों को अगले पांच वर्षों तक मुफ्त बिजली देने का ऐलान किया था। राज्य के कुल बिजली उपभोक्ताओं में 20 फीसद कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं।
AAP ने किया है 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का वादा
एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ इस वादे को पूरा करने के लिए राज्य सरकार को पांच वर्षों में 40 हजार करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ेगा। सरकार के आंकड़े के मुताबिक मार्च, 2022 के शुरुआत में यूपी की बिजली वितरण कंपनियों पर 11,779 करोड़ रुपये का बकाया है। कुछ इसी तरह की समस्या पंजाब की नई सरकार के समक्ष भी आती दिख रही है। आम आदमी पार्टी ने वहां चौबीसों घंटे बिजली देने के साथ ही दिल्ली के तर्ज पर हर परिवार को हर महीने 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का वादा किया था।
कोयला संकट के समय पंजाब हुआ था सबसे ज्यादा प्रभावित
कुछ महीने पहले जब देश में कोयला का संकट पैदा हुआ था तब सबसे ज्यादा बिजली आपूर्ति बाधित पंजाब में हुई थी। बिजली उत्पादन कंपनियों पर यहां की बिजली वितरण कंपनी पर 2157 करोड़ रुपये का बकाया है। एक अनुमान के मुताबिक हर परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली से राज्य सरकार पर बिजली सब्सिडी का बिल सालाना 9,000 करोड़ रुपये से बढ़ कर 15-17 हजार करोड़ रुपये तक हो सकता है। देखना होगा कि नई सरकार इस चुनौती का समाधान किस तरह से करती है।
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