गोरखपुर, कमलेश ने सदर तहसील क्षेत्र के ग्राम सभा भिटनी में जमीन का बैनामा कराया था। बैनामा के बाद वह जमीन के प्रपत्रों पर अपना नाम दर्ज करवाने यानी मालिक बनने के लिए तहसील का चक्कर लगाने लगे। डेढ़ महीने में होने वाला यह काम कराने के लिए उन्हें सात महीने लग गए।
जैसे-तैसे कमलेश का नाम तो प्रपत्रों पर चढ़ गया लेकिन ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें बैनामा कराने के बाद दाखिल खारिज के लिए महीनों चक्कर लगाना पड़ रहा है। धरातल पर लापरवाही की स्थिति यह हो चुकी है कि इस तरह के मामले भी अब मुख्यमंत्री के जनता दर्शन में पहुंचने लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसा मामला सामने आने पर आश्चर्य जताते हुए अधिकारियों को सुधार का निर्देश दिया था।
तीन महीने में हो रहा डेढ़ महीने में होने वाला कार्य
बैनामा कराने के दिन से 45 दिन में तहसील से दाखिल खारिज की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए लेकिन 70 से 80 दिन का समय लगना आम बात हो चुकी है। कोई न कोई कमी दिखाकर या कोर्ट न चलने का हवाला देते हुए इन मामलों को लटकाया जाता है। कई बार सारी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आवेदक से मिलने के इंतजार में नाम दर्ज नहीं होता। आवेदक एसडीएम से लेकर डीएम के कार्यालय तक चक्कर लगाता रहता है।
स्टिंग आपरेशन में मिली थीं कई अनियमितताएं
पूर्व जिलाधिकारी विजय किरन आनंद ने निबंधन विभाग में स्टिंग आपरेशन कराया था, जिसमें कई लोग अनियमितता में लिप्त मिले थे। इसके बाद निजी कर्मियों को वहां से हटा दिया गया था। तहसील प्रशासन का कहना है कि निबंधन कार्यालय से दस्तावेज न आने से दाखिल खारिज में देरी होती है। निबंधन विभाग कर्मचारियों की कमी का रोना रो रहा है। दोनों विभागों के तर्काें के बीच बैनामा कराने वाले लोग पिस रहे हैं। मुख्यमंत्री के जनता दर्शन कार्यक्रम में मामला पहुंचने के बाद अधिकारी मंगलवार को सक्रिय नजर आए।
एआरओ कोर्ट की हालत सबसे खराब
दाखिल खारिज के मामलों में सदर तहसील के साथ ही सहायक अभिलेख अधिकारी (एआरओ) के कोर्ट में स्थिति अधिक खराब है। एआरओ के यहां कई साल से मामले लंबित हैं।
दाखिल खारिज के लंबित मामलों की समीक्षा की जा रही है। ऐसी व्यवस्था बनाई जाएगी, जिससे निस्तारण समय से हो। इस कार्य में लापरवाही बरतने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
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