हिम सन्देश, 19 जनवरी 2022, बुधवार, देहरादून। उत्तराखंड में खुद को डॉक्टर बोलने वाले झोलाछाप मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हुए नजर आ रहे हैं। राज्य गठन के 21 साल बाद भी झोलाछापों पर कार्रवाई को लेकर स्वास्थ्य विभाग का सुस्त रवैया रहा है। जिसके कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया है। हर साल कुकरमुत्तों की तरह इन झोलाछापों की संख्या बढ़ती जा रही है। फर्जी डिग्री, प्रशिक्षण और योग्यता के सैकड़ों झोलाछाप राज्य के अलग अलग हिस्सों में इलाज कर रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग इन झोलाछापों पर कार्रवाई को लेकर लापरवाह बना हुआ है। इसी का नतीजा रहा कि ऋषिकेश के मुनिकीरेती क्षेत्र में एक झोलाछाप के गलत इलाज ने युवक की जान ले ली। अब इस झोलाछाप की जोर-शोर से तलाश हो रही है। सवाल यह है कि ऐसी कवायद हादसों से पहले क्यों नहीं की जाती? ऐसे व्यक्तियों पर कार्रवाई के लिए पूरा एक तंत्र है, बावजूद इसके राज्य में झोलाछापों की दुकान कैसे चल रही है। साफ है कि इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग को और अधिक संजीदगी के साथ काम करने की जरूरत है। ऐसे मामलों में दोषी व्यक्ति पर कड़ी कार्रवाई करने के साथ उन अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए, जिनके कंधों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है। समाज के स्तर पर भी जागरूकता की आवश्यकता है।
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