कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
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छात्रों व अभिभावकों में भटकाव नहीं बल्कि राजकीय विद्यालयों के प्रति विश्वास हो। कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, विद्यालयी शिक्षा विभाग उत्तराखंड के तत्वावधान में “मेरा विद्यालय मेरा गौरव” के तहत प्रवेश पखवाड़ा-स्वागतोत्सव मनाया गया। सभी नव प्रवेशी बच्चों का अभिभावकों के साथ विद्यालय में स्वागत किया गया। कोरोनाकाल में जहाँ आमजन ने धैर्य रखते हुए संयम और विश्वास के साथ अपनेपन की परीक्षा दी वह वास्तव में काबिल-ए-तारीफ है। वास्तव में अध्यापक-अभिभावकों की सकारात्मक सोच, सहयोग व सामंजस्य से ही यह सब सम्भव हो पाया है।
भले ही भौतिकवादी युग में दिखावे की चकाचौंध ने मानव मस्तिष्क को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हो, किन्तु सत्यता यही है कि अभी भी अधिकांश जरूरतमंद व अभावग्रस्त बच्चों के भविष्य को राजकीय विद्यालय ही संजोए हुए हैं। एक ओर जहाँ शिक्षा के बाजारीकरण करने की होड़ लगी है, नित नए-नए लुभावने विज्ञापन, शिक्षा में आधुनिक तकनीक के समावेश का भ्रामक प्रचार, एक्टिविटी बेस्ड टीचिंग के नाम पर मोटी कमाई आदि-आदि न जाने कितने प्रकार के प्रलोभनों से आमजन को आकर्षित कर दिया जाता है। बड़ी-बड़ी भव्य इमारतें, गेट पर गार्ड ताकि अभिभावक रहें हकीकत से दूर। वास्तविकता यह, कि अंकों की दौड़ में बच्चों का अधिकांश समय कोचिंग क्लास अथवा ट्यूशन में ही व्यतीत हो जाता है।
कारण और भी हैं, आज सयुंक्त परिवार की अहमियत कुछ लोग ही समझ पाते हैं,अधिकांश तो अलग रहना ज्यादा पसन्द कर रहे हैं। जबकि सयुंक्त परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला हुआ करती थी, दादा-दादी एवं अन्य परिवारजनों के सानिध्य में रहते हुए बच्चे को जो कुछ हाशिल होता था, वह सुकून अब एकल परिवार में कहाँ? वैसे भी रोजगार के चक्कर में माता-पिता दोनों बच्चे से अलग होते जा रहे हैं या फिर वे उन्हें कम समय दे पा रहे हैं। प्यार में बच्चे को जरूरत से ज्यादा पॉकेट मनी, महंगे मोबाइल व गाड़ी मिल जाती है, परिणामस्वरूप बच्चे भटकाव की ओर आकर्षित होने लगते हैं। इधर, जरूरतमंद व अभावग्रस्त बच्चे आज भी राजकीय विद्यालयों पर ही निर्भर हैं। अभिभावकों की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं होती, कि वे अपने पाल्य के लिए कुछ अलग कर पाए। ऐसे में इन बच्चों के लिए विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा ही संजीवनी की तरह है।
अति दुर्गम क्षेत्र स्थित राजकीय इण्टर कॉलेज बुरांसखंडा देहरादून, एक विशिष्ट श्रेणी का विद्यालय है, यहाँ पर 6 से 8 किमी दूर पैदल पहाड़ी रास्ते से चलकर बच्चे शिक्षा ग्रहण करने हेतु आते हैं, और रास्ते में जंगली जानवरों का भय अलग। प्रतिकूल मौसम एवं आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के हुनर को देखते हुए विद्यालय का स्टॉफ इनके लिए कुछ अलग करने के लिए प्रयासरत है। शैक्षिक व शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ विभागीय निर्देशों के अनुपालन में अनुभवी शिक्षकों-कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर बच्चों की वास्तविक पारिवारिक स्थिति की जानकारी प्राप्त की जाती है।
स्कूल चलो अभियान के तहत कॉलेज के शिक्षक-शिक्षिकाओं के दल द्वारा आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों को स्कूल चलने के लिए प्रेरित किया गया। यही नहीं शालात्यागी बच्चों के लिए भी शत प्रतिशत शिक्षा लक्ष्य बनाकर, अभिभावकों से मिलकर वातावरण सृजन किया गया। इस दौरान प्राथमिक विद्यालय बुरांसखंडा, सुआखोली, नालीकला, नया गांव व राजकीय उ मा विद्यालय सरोना सहित आस-पास के गांव में वातावरण-सृजन किया गया। इस सत्र के लिए विद्यालय में कुल 41 (इकतालीस) बच्चों का नवीन नामांकन हुआ। लगभग 6 से 8 किमी की पैदल पहाड़ी रास्ते की दूरी तय करना वास्तव में बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण तो है ही, किन्तु इनके पास इसके अलावा अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है। बच्चों में उत्साह है, पढ़ाई की ललक और उनके भविष्य को लेकर जहाँ अभिभावक चिंतनशील हैं, वहीं अध्यापकों में भी निःस्वार्थ सेवा-भावना स्वतः उत्पन्न हो जाती है।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य एन बी पंत, वरिष्ठ प्रवक्ता के के राणा, आर के चौहान, के पी भट्ट, आर एस रावत, प्रियंका घनस्याला, नेहा बिष्ट, मेघा पंवार, मनीषा शर्मा, जी बी सिंह आदि शिक्षकों ने अभिभावकों से विद्यालय विकास एवं छात्रों के स्वास्थ्य व सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा-परिचर्चा की। बच्चों को विभागीय योजनाओं का पूर्ण लाभ मिले, प्रधानाचार्य द्वारा अभिभावकों को संवंधित जानकारी दी गई। अवगत करवाया कि जरूरतमंद व अभावग्रस्त बच्चों को समय-समय पर स्वयंसेवियों के सहयोग से प्रोत्साहित किया जाता है, इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों की मदद भी की जाती है। भविष्य में भी बच्चों के सर्वांगीण विकास एवं उत्साहवर्धन हेतु स्वयंसेवियों का सहयोग व उच्च अधिकारियों का मार्गनिर्देशन अपेक्षित है। अभिभावक विद्यालय की शैक्षिक व शैक्षणिक गतिविधियों से पूरी तरह संतुष्ट दिखाई दिये साथ ही अपने बच्चों के प्रति चिंतनशील भी। नव प्रवेशी बच्चों में आत्मविश्वास की भावनाओं का विकास हो, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए उनकी सीनियर्स के साथ प्रतियोगिता आयोजित की गई। बच्चों ने उत्साहित होकर भाग लिया, स्थान पाने वाले छात्रों को पुरस्कृत कर अन्य बच्चों को शिक्षण सामग्री देकर प्रोत्साहित किया गया।
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